आज रविवार है और मेरी आँख अब खुली है, मैंने मुंह रज़ाई से निकाल कर दीवार घड़ी की तरफ देखा तो दस बजकर दस मिनट हो चुके थे । सर्दी बहुत है और हल्की हल्की बारिश भी हो रही है वक़्त का पता ही नहीं चला कब दस बज चुके थे ।
मैं दरवाज़े पर अख़बार लेने गया, अख़बार उठाते ही मुखपृष्ठ पर नेताओं की ज़ुबानी जंग का विस्तार से उल्लेख लिखा देखकर मैंने अपने आप से ही सवाल कर लिया यह चलाएंगे देश , मैंने भी अपने आप को तुरंत जवाब दिया इस क़ाबिल बनाया भी तो इन्हें हमने ही या यूँ कहे इनकी जैसी विचारधारा रखने वालो ने खैर यह तो अब रोज़मर्रा की बात हो गई की सारी हदों को तोड़कर एक से बढ़कर एक गाली गलौच वाले भाषण देना ।
मैंने अख़बार रखकर चाय के लिए गैस चूल्हे पर पानी रखकर दोबारा अख़बार उठाकर अगला पृष्ठ खोला, अगले पृष्ठ पर सबसे ऊपर लिखी खबर पढ़कर मेरा मस्तिष्क वर्त्ताकार गति करने लगा, अब यह ख़बरें पढ़ पढ़ कर तंग आ चुका हूँ मैं, मुज़फ्फरनगर दंगे, भोपाल दंगे, यह हो क्या गया हमारे देशवासियो को, क्या कुछ और काम नहीं रह गया क्या धर्माधार पर झगडे करने तक ही सीमित हो गए, यह क्यों नहीं समझते की यह सब सियासी चालें होती है चिंगारी से सारे देश में आग लगाने की, आज़ाद हुए आज हमें सड़सठ साल तीन महीने और कुछ दिन हो गए पर क्या तरक्की की है हमने , गरीबी का ग्राफ कितना घटा है, साक्षरता का ग्राफ कितना बढ़ा है क्या तरक्की करली हमने ।
मैंने झुंझलाते हुए अख़बार के दो-तीन पेज पलट डाले पलटते ही मेरी नज़र रविवार स्पेशल पेज पर पड़ी जिसमे एक अभिनेत्री अर्धनग्न हालात में खड़ी थी मेरे मन ने मुझसे कहा क्या तरक्की तरक्की के ढोल पीट रहा था यह देख तरक्की ।
✒ आसिफ कैफ़ी सलमानी
Written By - Asif Kaifi Salmani
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