सरहदी ग़ांधी खान अब्दुल गफ्फार खां इन्हें बच्चा खान बादशाह खाँ नामों से भी पुकारा जाता था इनका जन्म पेशावर में हुआ था यह अपने दादा अब्दुल्ला खान से प्रभावित थे इनके दादा सत्यवादी होने के साथ साथ बहादुर थे जिन्होंने अंग्रेज़ो से बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी इन्हें आज़ादी की लड़ाई के लिए मौत की सजा दी गई ।
बादशाह खान ने भी भारत स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया इन्हें अंग्रेजों ने बार बार जेल भेजा। अपने कामों और लगन की बदौलत इन्हें सरहदी गाँधी कहा जाने लगा पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के पठानों के साथ मिलकर सविनय अवज्ञा आंदोलन में बादशाह खान द्वारा स्थापित 'खुदाई खिदमतगार' के द्वारा हिस्सा लिया । सरकार ने आंदोलन को निर्ममता से कुचलना शुरू किया प्रदर्शनों और सार्वजनिक सभाओं को निर्दयतापूर्वक तितर-बितर किया जाने लगा इसी दौरान पेशावर में खुदाई खिदमतगारों को मशीन गनों से भून दिया गया ।
खान साहब का कहना है : प्रत्येक खुदाई खिदमतगार की यही प्रतिज्ञा होती है कि हम खुदा के बंदे हैं, दौलत या मौत की हमें कदर नहीं है। और हमारे नेता सदा आगे बढ़ते चलते है। मौत को गले लगाने के लिये हम तैयार है।
खान साहब किसी भी प्रकार भारत पाकिस्तान बटवारें से सहमत नहीं थे इन्हें सन् 1987 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया इन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी समाजसेवा और देशसेवा में लगा दी। 20 जनवरी 1988 को इनकी मृत्यु हो गई ।
संकलन : आसिफ कैफ़ी सलमानी
Compilation By - Asif Kaifi Salmani
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